{5.} युग युग से बाट निहार रहे !

!!  जय श्री कृष्णा  !!

 हम पर भी कर दो कृपा की नजर, हे श्याम सुंदर हे मुरलीधर। 
आरत जन तुमको पुकार रहे, युग युग से बाट निहार रहे, कब
आओगे प्यारे कान्ह कुंवर-हे श्याम...


जय श्री कृष्णा जय राधा माधव जय कँज बिहारी। 
जय गोपी जन वल्लभ,जय गिरिवरधारी-जय... मुरली मनोहर करुणा सागर,
जय गोवर्धनधारी-जय... यशोदा नँदन ब्रजजन रंजन ... अधर मधुर पर बँशी बजावे, 
रीझ रिझावे राधा प्यारी को-हमारो... यह छवि देखि मगन भई मीरा, ...


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!!  श्री कृष्ण :  !!

''जो व्यक्ति आत्मा में ही आनन्द लेता है और जिसका जीवन आत्म-साक्षात्कार युक्त है और जो अपने में ही पूर्णतया संतुष्ट रहता है, उसके लिए कुछ करणीय नहीं रह जाता।''


इस प्रकार ऐसे व्यक्ति की चेतना शुद्ध हो जाने से वह परमेश्वर के साथ अपने संबंध को जान लेता है और अपने आप में संतुष्ट रहता है और भगवान की सेवा में व्यस्त रहता है। वैदिक आदेशों के प्रति उसका कर्त्तव्य निशेष हो जाता है। भौतिक स्तर पर, स्वयं के प्रति करने योग्य उसके लिए कुछ नही रह जाता। वो जो करता है, कृष्ण के लिए करता है।


Shree Krishn :
''One who is, however, taking pleasure in the self, who is illuminated in the self, who rejoices in and is satisfied with the self only, fully satiated--for him there is nothing to do."


Thus, such an enlightened person comes to know his relation with the Lord. He is satisfied within himself & keeps himself busy in the service of Lord. He no longer has any obligations to the Vedic injunctions. For him, nothing is left to be done on material level for himself. Whatever he does. does it for Lord.




!!  श्री कृष्ण :  !!

मैं ही जल का मूल स्वाद हूँ, सूर्य की चमक हूँ, वैदिक मन्त्रों में ओंकार मैं ही हूँ, आकाश में गूंजने वाली गूँज भी हूँ, इस पृथ्वी की एकमात्र सुगंध हूँ, अग्नि का ताप हूँ, सब प्राणियो में मिलने वाला जीवन हूँ !
हरे कृष्ण !


Shree Krishn :
I am the TASTE of water, I am the BRIGHTNESS of sun, I am the ONKAR of vedic mantras, I am the THUNDERING in the sky, I am the basic FRAGRANCE of the earth, I am the HEAT of the fire, I am the LIFE of all the living beings.
Hare Krishn ! 

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!!  श्री कृष्ण :  !!
''जो कर्मेन्द्रियों को वश में तो करता है पर जिसका मन इन्द्रियविषयों का चिंतन करता रहता है, वह निश्चित रूप से स्वयं को धोखा देता है और मिथ्याचारी कहलाता है।''


Shree Krishn :
''One who restrains the senses and organs of action, but whose mind dwells on sense objects, certainly deludes himself and is called a pretender.''





Lord Krishn to Arjun:
"While speaking learned words, you are mourning for what is not worthy of grief. Those who are wise lament neither for the living nor the dead !"


श्री कृष्ण अर्जुन को कहते हैं :
"तुम विद्वानों वाले शब्द कहते हुए भी उनके लिए शोक कर रहे हो जो शोक के योग्य नही हैं.जो विद्वान् हैं, न वो जीवित के लिए शोक करते हैं और न ही मृत के लिए !"
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इन सब पेजों पर आपके लिए बहुत कहानिया है,



{ Anand Verma }